आंखे

पल पल सौ सौ अदाएं देखी,
खूबसूरत तुम्हारी आंखों की |
जाने क्या क्या कह गई,
हरकत तुम्हारी आंखों की ||

लरजती है चांदनी भी,
कहीं तन्हा ना हो जाए वो |
देखी चाँद की आंखों में उसने,
चाहत तुम्हारी आंखों की ||

थे रु--रु हम तन्हाई से,
की गुफ्तगू तन्हाई से |
कमबख्त वहाँ भी चहकी बातें,
हर वक्त तुम्हारी आंखों की ||

उन काजल की लकीरों में,
समेटे तुमने कीतने ही राज़ |
लुट गई कायनात ढूढते,
हकीकत तुम्हारी आंखों की ||

बनते हैं मरासीम यूं ही,
जब मीलती है नज़रों से नज़रें |
तुम्हारी पलके उठी इस तरफ़,
खुदा, कीस्मत हमारी आंखों की ||

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