मन का जगत,
मन की श्रष्टी,
मन की दुनिया ,
बसाई रे|
ढोल ताशे,
मृदंग साजे,
मन की बिसात,
बिछाई रे|
चंपा चमेली,
चंदन लाया,
मूरत मन की,
सजाई रे|
सागरा मनवा,
भया दीवाना,
प्रीत की वो झरण,
बहाई रे|
अब पर्व मनाऊँ,
नाचूं गाऊँ,
हाथ ऊछालूँ,
कदम थीरकाऊँ|
प्रेम के कीरतन,
में जग भुला,
ऐसी रास,
रचाई रे|
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