maximum mayhem
tussle between a self proclaimed mystic and a fate led marketeer
बरसात के बाद
हरी
-
हरी
चादर
,
फैली
धरा
पर
|
श्वेत
-
श्याम
सा
,
हुआ
ये
अंबर
||
हर
पल
कलकल
,
करता
सा
जल
|
पवन
के
झोंके,
कोमल शीतल ||
चीनार
पे आए,
धूंध
के
साए
|
बूंदे
बन
कर
,
प्रेम
लुटाये
||
धरती
बन
गई
,
एक
उपवन
|
जीवीत
हुआ
हो
,
जैसे
कण
-
कण
||
खो
गए
देखो
,
सभी
दायरे
|
हम
से
मीलने
,
ख़ुद
प्रभु
आए
रे
||
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment