कुछ गली हुई ज़िम्मेदारियों के चिथडे
हवा बन्दी में बनाये किले
और उनमे बिखरे गुज़िश्ता के जुनूनी इरादे
कोने में पड़े टूटे सपनो के धरदार टुकडे
ख़रोच लग जाये तो बस खून ही निकाल दे
एक अद्दद अरमानों की टोकरी
जो फफूंद से वज़नी हुए जा रही थी
पुरानी आदतों के पुलिंदे और
फिकी पड चुकी मुस्तकबील तस्वीरों का जत्था
सब इकट्ठे किए एक टाट मे
और निकाल दिये
बेकार के कुछ भारी रिश्ते भी थे
फैंकना मुमकिन ना था,
ज़रा सरका दिये एक तरफ कि कुछ जगह हो
फिर कुछ धूल झाडी, ज़रा जाले हटाए
चार कविताएं अटकी हुई थी वहाँ
आज निकल गई
मन अब कुछ हल्का लग रहा है
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