राधा तू, मैं किसना बन जाऊं

राधा तू
मैं किसना बन जाऊं
कंधे मेरे सर रेख दे
मैं मगन प्रेम मैं बंसी बजाऊं
जुग जुग से
जो जग दोहराए
तोहे प्रीत की ऐसी
कथा सुनाऊं
जैसे कजरा
नैनो को चाहे
तुझ संग ऐसी
लगन लगाऊं
समर्पण प्रीत के
प्राण है सजनी
इन प्राणों की मैं
सांस बन जाऊं
राधा किसना के प्रेम के जैसे
अपने प्रेम को अमर बनाऊं
सजनी,राधा तू
मैं किसना बन जाऊं

1 comment:

Megha Pathak said...
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