(Dedicated to my new home which I have fondly named "Hridayasharam")
बदरी के कंधों पे बैठा,
वायु पंखों को सहलाता |
तारक दल से करता गठबंधन,
जब उतर के आता रात अँधेरा ||
अम्बर के जब पट खुलते तब,
सुनाती कोयल प्रेम का कीर्तन |
भक्ति भाव से भरी गगरिया,
लेकर आता यहाँ सवेरा ||
फ़िर ठुमक ठुमक के आती किरणे,
और सजाती कुदरत का मेला |
कभी गिलहरी उधम मचाती,
कभी पंछियों का लगता डेरा ||
पुष्प सजा के अपने आनन पे,
तितलियों को लुभाता ललचाता |
कुछ प्रणय है जुगनुओं से भी,
जो नित निशा लगते अविरत फेरा ||
हेम सा शाही अंतर इसका,
अन्दर जिसके करुणा का सागर |
स्नेह के मधुरस में लथपथ,
ऐसा अनूठा हृदयाश्रम मेरा ||
1 comment:
Nice Name buddy....
can you please share pics of your "हृदयाश्रम" also ;)
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