कहता बंजारा

मैं आवारा मैं बंजारा,
मेरा कोई थोर ठीकाना|
आस्मान छत है मेरी,
धरती है मेरा बीछोना||

हर सुबह नई शुरुआत है,
हर शाम नई सरहद है|
आते जाते सारे मंज़र,
सारा सफर मेरा सुहाना||

धर्म कोई मजहब मेरा,
ना कोई गीता और कुरान|
इश्क इबादत इशा बंदगी,
गाऊं हर पल यही तराना||

जंगल, अंबर, झील, झरने,
पर्मात्मा के रूप ये सब|
आओ, नाचो गाओ संग इनके,
छोड़ो भी ये ख़ुद मैं सीमटना||

प्रणव ने यह पृथ्वी गुंथी,
वैकुण्ठ भी है यहीं बसाया|
सुनो, पर सुख मैं है परम सुख,
कहता बंजारा, यथार्थ फ़साना||

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